अतिरिक्त >> माजरा क्या है माजरा क्या हैनरेन्द्र कोहली
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माजरा क्या है पुस्तक का आई पैड संस्करण...
आई पैड संस्करण
मेरा एक मित्र है–दिनेश कपूर। मित्र ही कहूंगा। पहले छात्र था। अब बड़ा हो गया है। छात्र जब बड़े हो जाते हैं, तो मित्र ही हो जाते हैं। मुझे तो वह पहले भी ‘सर’ कहता था, अब भी वही कहता है, पर मेरी पत्नी को पहले वह ‘आंटी’ कहता था, अब ‘भाभी’ कहता है। मानना पड़ेगा कि अब वह बच्चा नहीं रह गया है। मैंने अपने अनुभव से जाना है, जब लड़के ‘आंटी’ से ‘भाभी’ संबोधन पर आ जाते हैं, तो वे स्त्री के वय को कम बताकर उसे प्रसन्न नहीं कर रहे होते; वे समाज से अपने लिए एक वयस्क का-सा सम्मान मांग रहे होते हैं। इस संदर्भ में लड़कियों के मनोविज्ञान के विषय में मैं कुछ नहीं कहना चाहूंगा।
तो दिनेश कपूर मेरा मित्र है। पढ़ता था तो दिल्ली में रहता था। अब नौकरी के सिलसिले में कई तबादले भुगतकर अहमदाबाद पहुंच गया है। पर दिल्ली छूटती है क्या किसी से। ग़ालिब से नहीं छूटी, तो यह दिनेश कपूर ही है। उसका दिल्ली आना-जाना भी लगा ही रहता है। नौकरी अहमदाबाद में है तो क्या हुआ–मायका और ससुराल तो दिल्ली में ही है न। फिर मित्र-दोस्त, सखी-सहेलियां, पूर्व प्रेमिकाएँ–सब दिल्ली में ही हैं। इन सबके साथ दिल्ली में हिंदी की पुस्तकें हैं। दिनेश का कहना है कि अहमदाबाद में हिंदी की पुस्तकें नहीं मिलतीं। मुझे काफी आश्चर्य होता है कि बंबई और अहमदाबाद जैसे नगरों में भी हिंदी की पुस्तकें सरलता से नहीं मिलतीं। नहीं मिलतीं तो कोई व्यापारी समझता क्यों नहीं कि वहां हिंदी की पुस्तकों का बाज़ार है। यदि व्यापारी नहीं समझता, तो पाठक ही मिलकर कुछ ऐसा क्यों नहीं करते कि वहां हिंदी की पुस्तकें मिलने लगें।
उससे भी अधिक आश्चर्य इस बात का होता है कि जहां पुस्तकें मिलती हैं, वहां तो कोई खरीदता नहीं; और जहाँ नहीं मिलती, वहाँ दिनेश पुस्तकें खरीदता है। इधर आम तौर पर पुस्तकें खरीदने का रिवाज नहीं है। पुस्तक खरीदो, तो लोग पूछते हैं, ‘‘कोर्स की है?’’ उत्तर दो, ‘‘नहीं।’’ तो हैरान होकर ही नहीं, आंखें फाड़कर पूछते हैं, ‘‘तो फिर खरीद क्यों रहे हो?’’
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